यह है हमारी पहचान

आज मैं स्टेशन रोड़ की और अपनी बाइक मोड रहा था। तभी एक व्यक्ति ने हाथ दिया, साथ में एक छोटा लड़का भी था और कहा भाई साहब, मेरे बच्चे की थोड़ी तबियत खराब है। हम टेकरी दर्शन करने आए थे। आप बच्चे को स्टेशन के पास तक छोड़ सकते हैं?। मैंने कहा आप भी बैठिए, चलिए छोड़ देता हूं। मैंने कहा आप हमारे शहर आए हैं…आप हमारे अतिथि हैं…बच्चे को अस्पताल ले चलते हैं। बच्चे को अस्पताल ले चलते हैं । उन्होंने कहा, नहीं भैया मातारानी के दर्शन कर वहीं पर दिखा दिया था। मैंने सीधे उन्हें स्टेशन छोड़ना बेहतर समझा…क्योंकि वह हमारे शहर में आस्था की वजह से आए हैं। उन्होंने कहा, धन्यवाद 🙏 मैंने अपना नाम बताया, उन्होंने अपना नाम अनिल तिवारी रीवा निवासी होना बताया, बच्चे ने अपना नाम अंशुल तिवारी बताया, खाने का पूछा, फरयाल का पूछा, चाय का इसलिए पूछा कि तिवारी जी टेकरी से आ रहे हैं। थक गए होंगे, उन्होंने मना किया, लेकिन उनको एक पानी की बॉटल दी… पूछा कोई दूसरी जरूरत तो नहीं सफर के दौरान तिवारी जी ने कहा कभी आप भी हमें सेवा का मौका दीजिए खान साहब आइए हमारे यहां…मैंने कहा, अभी आप हमारे यहां हैं, बोलते हुए वह भी स्टेशन में जाने लगे और मैं भी गाड़ी स्टार्ट कर चलते बना, लेकिन इतनी सब बात लिखने का एक ही मतलब है। कोई हमारे यहां आए तो, हंसते हुए जाए, मुस्कुराते हुए जाए, यही ले जाए हमारे यहां से

फरीद खान पत्रकार देवास

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