
मोहर्रम 1447 में इस वर्ष
वैसे तो दाउदी बोहरा समाज के धर्म गुरू प्रतिवर्ष हजरत इमाम हुसैन की शहादत की याद में मोहर्रम के पहले दस दिन विश्व के किसी भी भाग में अपना व्याख्यान देते है। लेकिन इस वर्ष चैनई में दिया गया व्याख्यान पिछले व्याख्यानो के बनिस्बत कई मायने में अद्वितीय है, जिसका धरातल पूर्ण रूपेण व्यापारिक और दाउदी बोहरा समाज के चाल, चरित्र, चेहरे का प्रतिबिंब है।
हजरत हुसैन की शहादत को इस्लाम के सभी वर्गो या फिरको में मोहर्रम के प्रथम दस दिनो में याद किया जाता है, लेकिन दाउदी बोहरा समाज में शहादत के व्यावहारिक पक्ष की चर्चा और औचित्य में काल्पनिक मानवीय दिमाग की उपज के इतर उनके त्याग व तपस्या के अंगीकार करने से परिपूर्ण करने पर ज़ोर दिया जाता है।
वैसे तो संपूर्ण बोहरा समाज व्यापार व्यवहार और संस्कार का अनुकरणीय प्रतिबिंब है, सहजता, सरलता का सार्वभौमिक आदर्श है। इस वर्ष 53 वें धर्म गुरू डाक्टर सैयदना मुफद्दल सैफुद्दीन का प्रवचन इसी पृष्ठ भूमि के इर्द-गिर्द अपने अनुयायीयों को जिस सरल भाव से प्रेरित करता है, दिल दिमाग में ऐसे पेबस हो जाता है जैसे स्कूल के बच्चो को अपना पाठ कंठस्थ हो जाता है। और वो जीवन के इम्तिहान में उच्चतम स्थान प्राप्त करते है।
यहीं कारण है कि बोहरा समाज के उनके अनुयायी उन्हें श्रद्धा और प्रेम से वशीभूत होकर “बावा” साहब कहते है। उनका यहीं वशीकरण उनके अनुयायियों को उनके प्रति ज़िम्मेदार बनाता है, उनमें आस्था और समर्पण का भाव पैदा करता है। इसी उद्देश्य और दृष्टिकोण के इर्द-गिर्द घुमता है बावा सबका वात्सल्य युक्त इस वर्ष के मोहर्रम का गहन अध्ययन युक्त गंभीर चिंतन मनन, जो उनके अनुयायियो को प्रेमपाश में बांधकर एक अनुकरणीय अनुशासित और अप्रतिम अनुयाई बनाता है। विश्व के धार्मिक धर्म गुरूओं में उनकी यह एक महान उपलब्धि है, जो सहज और आत्मिय भावना की प्रेरक उपलब्धि है।
सैयदना सैफुद्दीन साहब केवल व्याख्यान ही नहीं देते अपितु अपने पूर्वज महापुरुषो, नबी, इमाम और दुआतो के जीवन मे इन मूल्यो को कैसे आत्मसात किया गया, इसकी विस्तृत झलक भी बताते है। जो उनके अनुयायियो को प्रेरित करना एक महत्वपूर्ण ढंग है, जिसमें कल्पना शून्य है, सत्य और वास्तविकता प्रचूर मात्रा मे है। अनुयायियो को तो जैसे बैठे बिठाए ख़ज़ाना मिल गया, जिसने आत्मसात कर लिया वो तैर गया, और जो वंचित रहा, सोता रहा, सतह पर तैरता रहा उसने अमूल्य ख़ज़ाना अपने हाथ से खो दिया।
जहां प्राचीन उद्धरण प्रचूर मात्रा में है, जो नैतिक जीवन के लिए पौष्टिक है, उनका समावेश है। वहीं वर्तमान के संदर्भ अनदेखे नहीं किए गए है। भारतीय सनातन संदर्भ के साथ साथ कुरान इस्लाम और विश्व के अनेक धर्म शास्त्रो में ज्योतिष शास्त्र और नक्षत्रो का अपना महत्व है, इनकी एक एक करके विस्तार पूर्वक चर्चा कर सैयदना सैफुद्दीन ने 1447 हिजरी के मोहर्रम के व्याख्यान को एतिहासिक बना दिया है।
कहते है सितारो से आगे जहां और भी है। अखिल ब्रह्मांड की उनकी जानकारी उन्हें विद्धानों की सर्वश्रेष्ठ श्रेणी में सर्वोच्च स्थान देती है। यह न केवल दाऊदी बोहरा समाज के लिए अपितु संपूर्ण मानवता के लिए एक गौरव की बात है, जो बोहरा समाज को वैश्विक धरातल पर एक आदर्श सभ्य संस्कारित, सूझबूझ से ओतप्रोत, एक आदर्श मकाम पर स्थापित करता है।
कुल मिलाकर हजरत इमाम हुसैन की वफादारी, शुजाअत और शफ़ाअत की भावना को अक्षुण्ण रखकर अपने मानने वालो में देश भक्ति, परस्पर सद्भाव, स्नेह और आस्था के भाव से जोड़ने में सैयदना सैफुद्दीन का ये अनुष्ठान और उसके साथ चैन्नई के उनके भक्ती का समर्पण भाव सदैव स्मरणीय रहेगा।
पंडित मुस्तफा अरिफ
आध्यात्मिक रचनाकार मुंबई