फरीद खान

पिछले काफी दिनों से चारों और एक ही चर्चा चल रही है कि और वह है, श्वान की…जिसे आम भाषा में कुत्ता भी कहा जाता है। कागजों में और लिखने में श्वान का इस्तेमाल होता है। लेकिन बोलचाल की भाषा में कुत्ता ही कहा जाता है। चलिए मैं आता हूं अपनी बात पर… देश भर के कई वीडियो पिछले लगभग 1 साल से सभी सोशल प्लेटफार्म पर और अखबारों की सुर्खियों में चल रहे हैं कि, फलानी जगह एक कुत्ते ने एक बच्चे को काट लिया…कुत्तों के झुंड ने बच्ची को नोच कर मार डाला…यह बात में आपको इसलिए बता रहा हूं।ताकि आपके सामने हर पहलू आ सके। कुछ छूट जाए तो माफी का अभी से ही तलबगार हूं…चलिए आगे बढ़ते हैं। भोपाल में एक मासूम को एक श्वान ने गले में काटकर खत्म कर दिया था। उसके पहले भी बहुत से हादसे हुए, जिसमें कुत्तों ने बहुत से लोगों को अपना शिकार बनाया…आखिर हमारा और श्वान का रिश्ता 5 हजार साल से ज्यादा का साथ में होना बताया जा रहा है फिर ऐसा क्या हो गया कि कभी कभार कोई छोटी मोटी घटना को अंजाम देने वाले कुत्ते इतने उग्र हो गए…आज कुत्तों का जिक्र सर्वोच्च न्यायालय में भी होने लगा…कोर्ट कुत्तों के रहन सहन पर आदेश निकालने लगा…बहुत से श्वान प्रेमी, इनके लिए सड़को पर आ गए तो बड़ी तादात में इनका विरोध भी होने लगा, होने तो यह भी लगा कि एक ही घर में कुत्ते को लेकर दो धड़े हो गए, एक पक्ष में और एक विपक्ष में…चलिए मैं कुछ पीछे चलता हूं…आप लोगों को जैकी श्रॉफ अभिनीत फिल्म तेरी मेहरबानियां…तो याद होगी, जिसमें जैकी श्रॉफ और कुत्ते का प्रेम सर चढकर बोलने लगता है। उस फिल्म के बाद तो जैसे कई लोगों में कुत्ते को पालने का चलन सा चलने लगा…वफादारी का जीता जागता उदाहरण माने जाने लगा, कालोनी, मोहल्ले में तो आज भी पुराने कुत्ते, अपने क्षेत्र में रहने वाले हर शख्स की खुशबू से पहचानते हैं और यह सिस्टम आज भी है। फिर आखिर ऐसा क्या हुआ, जो कुत्ता सदियों से हमारे बीच का हिस्सा है, इतना उग्र हो चला…इनकी तादाद बढ़ती गई और यह कालोनी, मोहल्ले, बड़े, बच्चे सब पर हमलावर होने लगे…पहले हर घर में सिस्टम में तब्दील था कि गाय के साथ कुत्तों को भी रोटी देना है। लेकिन अब वक्त बदल चुका है। हमारे तौर तरीके बदल चुके हैं। पहले हमारे घरों की सब्जियों का वेस्ट, बची हुई रोटी कुत्ते, गाय, बकरा बकरियों के लिए होती थी, लेकिन अब हम हर सुबह कचरा गाड़ी का इंतजार करते हैं और वह सारी सब्जियां, रोटी मतलब सभी वेस्टेज खाद्य सामग्री कचरे की गाड़ी में डाल देते हैं। आज की अगर हम बात करें तो कुत्तों को इंजेक्शन लगाना, नसबंदी करना वगैरह वगैरह करना सहूलत की बातें करना, सरकारी कागज खर्ची और रुपयों की बढ़ोतरी तो साबित होगी ही…साथ में एक ही समाज के दो धड़ों में वैमनस्यता का कारक भी होगी…लेकिन अगर कुछ हद तक इस पीड़ा से छुटकारा पाना है तो, वेस्ट को कचरा गाड़ी के मुंह में डालने की बजाय…इनके पास डालने की कोशिश करें। बाकी आपकी मर्जी…आगे फिर आपसे मिलते रहेंगे।जय हिंद
जय हिंद