हाई कोर्ट का निर्णय- वक्फ बोर्ड की भूमि की लीज नीलामी वैध।। वक्फ की संपत्ति पर क्या बोले सनवर पटेल

*हाई कोर्ट का अहम् फैसला – म.प्र. वक्फ बोर्ड द्वारा कृषि भूमि लीज नीलामी पूरी तरह वेध , नीलामी रोकने वाली याचिका खारिज*भोपाल, 23 मई 2025 –मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की खंडपीठ द्वारा , पी आई एल याचिका क्रमांक 18916/ 25 पर आदेश दिनांक 22/05/ 2025 में उच्च न्यायालय की खंड पीठ जिसमें न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल और न्यायमूर्ति विवेक जैन शामिल थे, ने आज एक महत्वपूर्ण फैसले में वक्फ कृषि भूमि की लीज नीलामी को लेकर दायर जनहित याचिका को “निराधार और अस्वीकार्य” ठहराते हुए खारिज कर दिया। यह याचिका अमीर आज़ाद अंसारी व अन्य द्वारा दायर की गई थी।याचिका में दो मुख्य आपत्तियाँ उठाई गई थीं:पहली, कि वक्फ बोर्ड के आदेश पर हस्ताक्षर करने वाली मुख्य कार्यपालन अधिकारी डॉ. फरज़ाना ग़जाल पूर्णकालिक सीईओ नहीं हैं, जो कि वक्फ अधिनियम, 1995 की धारा 23 के खिलाफ है।दूसरी, कि 1994 के एक पुराने परिपत्र के अनुसार वक्फ संपत्ति की नीलामी केवल मुतवल्ली द्वारा की जा सकती है, बोर्ड द्वारा नहीं। *न्यायालय का आदेश ओर स्पष्ट संदेश:* इन दोनों दलीलों को पूर्णतः निराधार मानते हुए कहा कि वैसे तो याचिकाकर्ता के वकील ने अस्थाई शब्द से खेलने की कोशिश की मगर अस्थाई यानी temprery या for the time being ko सही संदर्भ में पढ़ा जाए तो डॉ. फरज़ाना ग़ज़ल वक्फ अधिनियम की धारा 23 के प्रावधानों अनुसार एक मुस्लिम महिला, उप सचिव स्तर से उच्च स्तर की अधिकारी हैं, और इनकी सेवाएं उच्च शिक्षा विभाग से पिछड़ा वर्ग तथा अल्प संख्यक कल्याण विभाग में तीन वर्षों के लिए तीन डिपुटेशन पर ली गई हैं फिर सरकार ने उन्हें वक्फ बोर्ड के मुख्य कार्यपालन अधिकारी का उत्तरदायित्व सौंपा है। उनके नियुक्ति आदेश में अस्थाई शब्द सीमित अवधि तीन वर्षों के के संदर्भ में उपयोग किया गया है इससे अधिनियम के प्रावधान का उल्लंघन नहीं माना जा सकता है। अतः उन्हें पूर्णकालिक सीईओ न मानने का कोई आधार नहीं है।दूसरे बिंदु पर अदालत ने दो टूक कहा कि 1994 का परिपत्र अब मान्य नहीं है क्योंकि उसे 2014 के वक्फ संपत्ति लीज नियमों ने प्रतिस्थापित कर दिया है। इन नियमों के अनुसार वक्फ संपत्तियाँ अब बोर्ड अथवा मुतवल्ली, दोनों द्वारा लीज पर दी जा सकती हैं। *न्याय की नज़र में…* यह फैसला न केवल एक बेबुनियाद जनहित याचिका पर न्यायालय का करारा प्रहार है, बल्कि यह वक्फ बोर्ड के कार्यों की वैधता को भी सशक्त करता है। इस निर्णय से यह स्पष्ट होता है कि,इस प्रकार की याचिकाओं से माननीय न्यायालय का कीमती समय बर्बाद होता हे।इस निर्णय से यह भी स्पष्ट हो गया है कि अब तथ्यों से परे जाकर, तथ्यों को छुपा कर केवल गुमराह कर और कानून की गलत व्याख्या कर माननीय न्यायालय को गुमराह करने की कोशिशें सफल नहीं होगी। न्यायपालिका ने एक बार फिर दिखाया है कि सही संदर्भ में कानून की व्याख्या तथ्यों और समयानुकूल नियमों के आधार पर ही की जाएगी।’ इस याचिका के खारिज होने से वक्फ बोर्ड के कामो को प्रमाणिकता मिली हैं।हम अदालत की दृढ़ता को सलाम करतें है ।यह आदेश इस बात का भी सशक्त उदाहरण है कि, कैसे न्यायपालिका जनहित के नाम पर दायर दुर्भावनापूर्ण याचिकाओं से, नियमानुसार और कानून के मुताबिक संस्थाओं को संचालित करने वाले जनसेवकों की रक्षा करती है ‘*डॉ सनवर पटेल* अध्यक्ष – म.प्र. राज्य वक्फ बोर्ड |

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